“हिज्र में दीवाने की हालत कुछ ऐसी हुई..
सूरत को देख कर खुद तस्वीर रोने लगी..!”
Tag: शर्म शायरी
सामने आए मेरे
सामने आए मेरे, देखा मुझे , बात भी की
मुस्कुराये भी, पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर
कल का अख़बार था, बस देख लिया, रख भी दिया
दुआ नहीं मांगी थी
दुआ को हाथ उठाते हुए लरजता हूँ
कभी दुआ नहीं मांगी थी माँ के होते हुए
अल्फ़ाज़ ही क्या
वोह अल्फ़ाज़ ही क्या जो समझानें पढ़ें,
हमने मुहब्बत की है कोई वकालत नहीं ।
जब उसने मुझसे
जब उसने मुझसे कहा तुम्हारे दोस्त अच्छे नहीं।।।तब हम थोडा मुस्कुराये ओर कहा के, पगली तेरी इतनी तो “औकात” नहीं की तु मेरे दोस्तों की “औकात” बता सके।।।दिल तुझे दीया हैं लेकिन “जान” आज भी “दोस्तो” के लिए ही है।।।।।
मरने के बाद
बाद मरने के बाद दफ़नाना मुझे मैखाने मैं…मैखाने की मिट्टी रहे मैखाने मै
मजबूरियाँ पे न हँसिये
किसी की मजबूरियाँ पे न हँसिये,
कोई मजबूरियाँ ख़रीद कर नहीं लाता…
डरिये वक़्त की मार से,
बुरा वक़्त किसीको बताकर नही आता…
अकल कितनी भी तेज ह़ो,
नसीब के बिना नही जित सकती..
बिरबल अकलमंद होने के बावजूद,
कभी बादशाह नही बन सका !!!
कभी ना मिल पाये
नदी के किनारों की तरह शायद हम तुम
कभी ना मिल पाये…
पर समन्दर में मिलने तक तुम मेरे साथ तो
चलो…
हमदर्द नहीं होता
इस दुनिया मे कोई किसी का
हमदर्द नहीं होता,
लाश को शमशान में रखकर अपने लोग ही पुछ्ते हैं।
“और कितना वक़्त लगेगा”…
शौक पूरे करो
शौक पूरे करो….
ज़िन्दगी तो खुद ही एक दिन पूरी हो जाएगी…!