पलकों की हद तोड़ के दामन पे आ गिरा,एक आंसू मेरे सबर की तौहीन कर गया…..
Tag: शर्म शायरी
है हमसफर मेरा तू..
है हमसफर मेरा तू..
अब…
मंझिल-ऐ-जुस्तजू क्या…
खुद ही कायनात हूँ…
अब….
अरमान-ऐ-अंजुमन क्या…???
एक रूह है..
एक रूह है..
जैसे जाग रही है.. एक उम्र से… ।एक जिस्म है..
सो जाता है बिस्तर पर.. चादर की तरह… ।।
किसी को चाहना
किसी को चाहना ऐसा की वो रज़ा हो जाए…
जीना जीना ना रहे एक सज़ा हो जाए…
ख़ुद को क़त्ल करना भी एक शौक़ लगे…
हो ज़ख़्मों में दर्द इतना की दर्द मज़ा हो जाए…
किसी मोहब्बत वाले
किसी मोहब्बत वाले वकील से ताल्लुक हो तो बताना दोस्तों …
मुझे अपना महबूब अपने नाम
करवाना है?
हमारे ऐतबार की हद
मत पुछ हमारे ऐतबार की हद तेरे एक इशारे पे..
हम काग़ज़ की कश्ती ले कर समंदर में उतर गये थे..
ज़रूरतों ने उनकी
ज़रूरतों ने उनकी, कोई और ठिकाना ढूंढ लिया शायद,
एक अरसा हो गया, मुझे हिचकी नहीं आई|
दीवाने होना चाहते हैं
सब इक चराग़ के परवाने होना चाहते हैं…
अजीब लोग हैं दीवाने होना चाहते हैं|
छोड़ दिया सबको
छोड़ दिया सबको बिना वजह तंग करना,
जब कोई अपना समझता ही नहीं तो उसे अपनी याद क्या दिलाना !!
कब लोगों ने
कब लोगों ने अल्फ़ाज़ के पत्थर नहीं फेंके
वो ख़त भी मगर मैंने जला कर नहीं फेंके
ठहरे हुए पानी ने इशारा तो किया था
कुछ सोच के खुद मैंने ही पत्थर नहीं फेंके
इक तंज़ है कलियों का तबस्सुम भी मगर क्यों
मैंने तो कभी फूल मसल कर नहीं फेंके
वैसे तो इरादा नहीं तौबा शिकनी का
लेकिन अभी टूटे हुए साग़र नहीं फेंके
क्या बात है उसने मेरी तस्वीर के टुकड़े
घर में ही छुपा रक्खे हैं बाहर नहीं फेंके
दरवाज़ों के शीशे न बदलवाइए नज़मी
लोगों ने अभी हाथ से पत्थर नहीं फेंके|