मैं पूछता रहा

मैं पूछता रहा

और फ़िर..
इस तरह

मिली वो मुझे सालों के बाद ।
जैसे हक़ीक़त मिली हो ख़यालों के बाद ।।
मैं पूछता रहा उस

से ख़तायें अपनी ।
वो बहुत रोई मेरे सवालों के बाद ।।

कभी किसी को

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन तो कहीं आसमान नहीं मिलता

जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबाँ नहीं मिलता

बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिसमे धुआँ नहीं मिलता

तेरे जहाँ में ऐसा नहीं कि प्यार न हो
जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन तो कहीं आसमान नहीं मिलता