मौत का आलम देख कर तो ज़मीन भी दो गज़ जगह दे देती है…
फिर यह इंसान क्या चीज़ है जो ज़िन्दा रहने पर भी दिल में जगह नहीं देता…
Tag: व्यंग्य
मुमकिन नहीं है
मुमकिन नहीं है हर रोज मोहब्बत के नए, किस्से
लिखना……….!!
मेरे दोस्तों अब मेरे बिना अपनी, महफ़िल सजाना सीख
लो…….!!
क्यों बताये किसी को
क्यों बताये किसी को हाले दिल अपना,
जो तूने बनाया वही हाल है अपना ।।
एक बहाना था
उठाइये
हम अपनी रूह तेरे जिस्म में छोड़ आए फ़राज़
तुझे गले से लगाना तो एक बहाना था|
मैं बंद आंखों से
मैं बंद आंखों से पढ़ता हूं रोज़ वो चेहरा,जो शायरी की सुहानी किताब जैसा है.!!
हाथों की लकीरों से
अपने हाथों की लकीरों से ना निकल मुझे.!
बड़ी शिद्दत से मैने तेरी इबादत की है.!!
इतने चेहरे थे
इतने चेहरे थे उसके चेहरे पर,
आईना तंग आ के टूट गया|
कागज पे तो
कागज पे तो अदालत चलती है,
हमें तो तेरी आँखो के फैसले मंजूर है..!!
पलकों की हद
पलकों की हद तोड़ के दामन पे आ गिरा,एक आंसू मेरे सबर की तौहीन कर गया…..
है हमसफर मेरा तू..
है हमसफर मेरा तू..
अब…
मंझिल-ऐ-जुस्तजू क्या…
खुद ही कायनात हूँ…
अब….
अरमान-ऐ-अंजुमन क्या…???