बुझने लगी हो आंखे तेरी, चाहे थमती हो रफ्तार
उखड़ रही हो सांसे तेरी, दिल करता हो चित्कार
दोष विधाता को ना देना, मन मे रखना तू ये आस
“रण विजयी” बनता वही, जिसके पास हो “आत्मविश्वास”
Tag: व्यंग्य
बीच समंदर देख
मंजर का पसमंजर देख सहरा बीच समंदर देख……….!
एक पल अपनी ऑंखें मूंद एक पल अपने अंदर देख…………!
वो भी आधी रात
वो भी आधी रात को निकलता है और मैं भी ……
फिर क्यों उसे “चाँद” और मुझे “आवारा” कहते हैं लोग …. ?
अधूरी न लिखा कर
ए खुदा अगर तेरे पेन की श्याही खत्म है तो मेरा लहू लेले,
यू कहानिया अधूरी न लिखा कर
तुझे भी इजाजत है
सब छोड़े जा रहे है आजकल हमें,,,,,
” ऐ जिन्दगी ” तुझे भी इजाजत है,,,,
जा ऐश कर…ll
मुमकिन नहीं की
कोई तो लिखता होगा इन कागजों और पत्थरों का भी नसीब ।
वरना मुमकिन नहीं की कोई पत्थर ठोकर खाये और कोई पत्थर भगवान बन जाए ।
और कोई कागज रद्दी और कोई कागज गीता और कुरान बन जाए ।।
यह परिणाम है
कदम निरंतर बढते जिनके , श्रम जिनका अविराम है ,
विजय सुनिश्चित होती उनकी , घोषित यह परिणाम है !
तेरी हो जाए
कभी आग़ोश में यूँ लो की ये रूँह तेरी हो जाए।
बुलंदी देर तक
बुलंदी देर तक किस शख्श के हिस्से में रहती है
बहुत ऊँची इमारत हर घडी खतरे में रहती है ।
छोटे से दिल
इस छोटे से दिल में किस किस को
जगह दूँ ,
गम रहे, दम रहे, फ़रियाद रहे, या तेरी
याद रहे..