लिख कर बयां नही कर सकता
मैं हर गुफ़्तुगू,
कुछ था जो बस नज़रों से
नज़रों तक ही रहा..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
लिख कर बयां नही कर सकता
मैं हर गुफ़्तुगू,
कुछ था जो बस नज़रों से
नज़रों तक ही रहा..
जिंदा रहने पे तवज्जो ना कोई मिल पाई..
कत्ल होके मै,,,
एक शहर के अखबार में हूँ..
मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम,
मोहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है !!
आखरी हिचकी तेरे
पहलू में आये
मौत भी मैं
शायराना चाहता हूँ…
वो जब पास मेरे होगा तो शायद कयामत होगी….,
अभी तो उसकी शायरी ने ही तवाही मचा रखी है.
बाँटने निकला है वो फूलों के तोहफ़े शहर में,
इस ख़बर पर हम ने भी,
गुल-दान ख़ाली कर दिया|
आया था किस काम से,
तू सोया चादर तान।
सूरत संभाल ए गाफिल,
अपना आप पहचान।।
थे तो बहुत मेरे भी इस दुनियां में कहने को अपने,
पर जब से हुआ है इश्क हम लावारिस हो गए !!
नजाकत तो देखिये, की सूखे पत्ते ने डाली से कहा,
चुपके से अलग करना वरना लोगो का रिश्तों से भरोसा उठ जायेगा !!
मुझे कुबूल नहीं खुद ही दूसरा चेहरा,
ख़ुशी तो मुझ को भी अक्सर तलाश करती है…