कौन समझ पाया है आज तक हमें ??
हम अपने हादसों के इकलौते गवाह हैं
Tag: व्यंग्य
एक आरज़ू है
एक आरज़ू है पूरी अगर परवरदिगार करे,
मैं देर से जाऊं और वो मेरा इंतज़ार करे
ना जाने कैसे
ना जाने कैसे इम्तेहान ले रही है..
जिँदगी आजकल
मुक्दर, मोहब्बत और दोस्त तीनो नाराज रहते है…..
गुफ्तगू करते रहिये
गुफ्तगू करते रहिये, ये इंसानी फितरत है..
जाले लग जाते हैं, जब मकान बंद रहते हैं….!!-
कमाल का कारीगर
खुदा तुं भी कमाल का कारीगर नीकला,
खींच क्या लि दो तीन लकीर तूने हाथोंमे
ये भोला इन्सान उसे तक़दीर समझने लगा.. ||
जिन्दगी तेरी भी
जिन्दगी तेरी भी, अजब परिभाषा है ।
सँवर गई तो जन्नत, नहीं तो सिर्फ तमाशा है ।।
अब इस से भी
अब इस से भी बढ़कर गुनाह-ए-आशिकी क्या होगा !
जब रिहाई का वक्त आया..तो पिंजरे से मोहब्बत हो चुकी थी |
इतने ठंडे क्यों हो
किसी ने घड़े से पूछा, कि तुम इतने ठंडे क्यों हो. …..
अति अर्थ पूर्ण उत्तर था घड़े का ;
जिसका अतीत भी मिट्टी,
और भविष्य भी मिट्टी, उसे गर्मी किस बात पर होगी. …….!!!
लाखों ठोकरों के बाद
लाखों ठोकरों के बाद भी संभलता रहूँगा मैं..
गिरकर फिर उठूँगा, और चलता रहूँगा मैं…
गृह-नक्षत्र जो भी चाहें लिखें कुंडली में मेरी..
मेहनत से अपना नसीब बदलता रहूँगा मैं…
बडा अजीब सा
बडा अजीब सा खौफ़ था उस शेर की
आंखों मे.,
जिसने जंगल मे हमारे जुतों के निशान देखे…!!!!