भूख फिरती है मेरे शहर में नंगे पाँव..
रिज़्क़ ज़ालिम की तिजोरी में छिपा बैठा है।
Tag: व्यंग्य
तकिये पे लगे दाग
गर्दन पर निशान तेरी साँसों के…
कंधे पर मौजूद तेरे हाथ का स्पर्श…
बिस्तर पर सलवटें…
तकिये पे लगे दाग..
चादर का यूँ मुस्कुराना..
शायद, तुम ख्वाब में आए थे…!
सोच में भी
मैं शिकायत क्यों करूँ, ये तो क़िस्मत की बात है..!!
तेरी सोच में भी मैं नहीं, मुझे लफ्ज़ लफ्ज़ तू याद हैं
नजाकत तो देखिये
उनकी नजाकत तो देखिये साहब….
“चाँद सा” जब कहा
तो कहने लगे”,चाँद कहिये ना ये ” चाँद सा ” क्या है..
चाहा भी न होगा
इतना तो किसी ने चाहा भी न होगा तुझे.
जितना मैंने सिर्फ सोचा है तुम्हें..
अदालत चलती है
कागज पे तो अदालत चलती है, हमें तो तेरी आँखो के फैसले मंजूर है..!!
अज़ीज़ आशना थे.!!
वक़्त बदला तो बदल गये वो लोग,जो महफ़िलो में सबसे अज़ीज़ आशना थे.!!
उम्र इज़ाफ़ी है
एक मोहब्बत काफ़ी है
बाक़ी उम्र इज़ाफ़ी है !
बाते करता है..
आशिक था जो मेरे अन्दर वो कई साल पहले मर गया…!
अब तो एक शायर है,
जो बहकी बहकी बाते करता है..!!
मेरे सबर की तौहीन
पलकों की हद तोड़ के दामन पे आ गिरा,एक आंसू मेरे सबर की तौहीन कर गया…..