भटक गया था

मेरा खुदा एक ही है….
जिसकी बंदगी से मुझे सकून मिला

भटक गया था मै….
जो हर चौखट पर सर झुकाने लगा..

एक बार कह दो

दबे दबे होंठो से कुछ बात आज कह दो,
दिल मैं जो दबाये हैं वो अरमान आज कह दो,
कह दो कि…
मुझसे कितना प्यार करते हो,
कह दो कि…
दिल में सिर्फ मुझको रखते हो,
…न कह सको अगर होंठो से कुछ,
तो प्यार के कुछ ख़त मेरे नाम कर दो,
कुछ तो कहो कुछ इशारा तो दो,
हवाओं के झोंको से कह दो,
या खूबसूरत फ़िज़ाओं से,
बस प्यार है मुझसे एक बार तो कह दो,
नहीँ कहते हो मुझसे कुछ तब भी कुछ इशारे होते हैं,
ना जाने क्या कशिश है तुम्हारी आँखों में…
कि देख के मुझे ये झुक जाती हैं,
थोड़ी थोड़ी हया आती है इनको,
और लज्जा से ये शर्मा जाती हैं,
कभी कभी दांतो से होंठों को दबाने लगते हैं,
…तो कभी कभी खुद मैं सिमटने लगते हैं,
शायद ये दिल को पहली बार हुआ है,
कुछ मीठा सा एहसास है,
कई लोगो ने मुझसे कहा शायद तुम्हे भी प्यार हुआ है,
कैसे ये जान लूँ क्यों लोगों की बात मान लूँ…
एक बार ही सही दबे दबे होंठो से कुछ बात कह दो,
कि है आग प्यार की आपके दिल में दबी कहीं,
इतना एक बार कह दो,
मेरी कश्मकश को एक नाम दे दो,
प्यार का कोई पैगाम दे दो,
फिर लिखो कोई दिल की कहानी,
कि थी कोई हीर जो थी रांझे की दीवानी,
…जिसने माना था तुम्हें प्यार और कहा था,
कि दबे दबे होंठो से कुछ बात कह दो,
“मीत” है तुम्हें भी है प्यार मुझसे…
…इतना बस एक बार कह दो !!

तन्हा कोई मंज़र लिखा

इन्तहां लिखी इकरार लिखा,
पल पल का इंतज़ार लिखा,
तेरी यादों को दिल में बसा के,
हर रोज़ तुझे पैगाम लिखा…
सूने सूने तुझ बिन जीवन को,
पतझड़ का मौसम लिखा,
तेरी यादों के नील गगन में,
तन्हा कोई मंज़र लिखा…
तुझ बिन चलती इन सांसो को,
निष्प्राण कोई जीवन लिखा,
मेरे खयालों के हर पन्ने में,
तेरा ही कोई ज़िक्र लिखा…
रूठी रूठी रातों में,
जगती हुई इन आँखों में,
आंसुओं का सैलाब लिखा,
तुझ बिन कहीं हैँ खोये रहते,
जीते हुए भी पल पल मरते,
तेरी इन यादों का हर बातों का,
हर लम्हा हर पल लिखा…
मीत यादों को दिल में बसाके,
रोज़ तुझे पैगाम लिखा !!