रिवाज़ तो यही हैं दुनिया का,
मिल जाना बिछड़ जाना,
तुमसे ये कैसा रिश्ता हैं,
ना मिलते हों, ना बिछड़ते हों !
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
रिवाज़ तो यही हैं दुनिया का,
मिल जाना बिछड़ जाना,
तुमसे ये कैसा रिश्ता हैं,
ना मिलते हों, ना बिछड़ते हों !
कोई सुलह करा दे जिदंगी की उलझनों से…बड़ी तलब लगी है आज मुस्कुराने की …!!
पता नहीं क्या रिश्ता था टहनी से उस पंछी का..
उसके उड़ जाने पर वो बड़ी देर तक काँपती रही..!
अजीब सी बस्ती में ठिकाना है मेरा जिसे वो ‘शहर’
कहते हैं…
जहाँ लोग मिलते कम, झाँकते ज्यादा हैं….
खुशहाली में एक बदहाली तू भी है और मैं भी हूँ
हर निगाह पर एक सवाली तू भी है और मैं भी हूँ
दुनिया कुछ भी अर्थ लगाये हम दोनों को मालूम है मगर
भरे भरे पर खाली खाली तू भी है और मैं भी हूँ..
एक लम्हा भी मसर्रत का बहुत होता है,
लोग जीने का सलीका ही कहाँ रखते हैं।
एक बाज़ार है ये दुनिया…
सौदा संभाल के कीजिए…
मतलब के लिफ़ाफ़े में…
बेशुमार दिल मिलते हैं…
आने लगा हयात को अंजाम का खयाल,
जब आरजूएं फैलकर इक दाम बन गईं।
अगर कांटा निकल जायें चमन से,
तो फूलों का निगहबां कौन होगा।
आँखों में छुपाए फिर रहा हूँ,
यादों के बुझे हुए सबेरे।