मेरे हाथ महकते रहे तमाम दिन…।
जब ख्वाब में तेरे बाल संवारे मैंने
Tag: व्यंग्य
छोड़ आया हूँ
छोड़ आया हूँ गर्म चाय मेज़ पर।
यह इशारा है तुमसे जुदाई का।
वक्त के मरहम से
वक्त के मरहम से अभी दिल के जख्म भरे ही नहीं थे,
न जाने आज वो फिर क्यों याद आ गए…………….!!
वक़्त का फेर
वक़्त का फेर
वक़्त है ढल चुका
और ढल चुका वो दौर भी….
फ़िर भी आइने में, वक़्त पुराना ढूंढते हैं !!
महफिलें सजती थीं जहाँ
दोस्तों के कहकहों से….
दीवारों-दर पे, उनके निशान ढूंढते हैं !!
कुछ दर्द वक़्त ने
तो कुछ हैं अपनों ने दिए….
अकेले आज भी, दिल के टूकड़ों को जोड़ते हैं !!
मै रात भर
मै रात भर सोचता रहा मगर फैंसला न कर सका,
तू याद आ रही है या मैं याद कर रहा हूँ…
मैं तुझसे वाकिफ हूं
ऐ समन्दर मैं तुझसे वाकिफ हूं
मगर इतना बताता हुँ,
वो आंखें तुझसे ज्यादा गहरी हैं
जिनका मैं आशिक हुँ..!
ना जाने रोज कितने लोग
ना जाने रोज कितने लोग रोते रोते सोते है,
और फिर सुबह झूठी मुस्कान लेकर सबको सारा दिन खुश रखते है !!
आदतें अलग हैं
आदतें अलग हैं, मेरी दुनिया वालों से, कम दोस्त रखता हूँ, पर लाजवाब रखता हूँ..
हम जिंदगी में
हम जिंदगी में बहुत सी चीजे खो देते है,
“नहीं” जल्दी बोल कर और “हाँ” देर से बोल कर..
इस तरह सताया है
इस तरह सताया है परेशान किया है,
गोया कि मोहब्बत नहीं एहसान किया है….!!