उसने माँगी थी

उसने माँगी थी मुझसे जरा सी दुआ,साथ मैंने ही उसके खुदा कर दिया..!!
एक खुदगर्ज़ “ग़ज़ल”

नाम जिसको दिया अपनी पहचान दी,
उसने मुझको ही सबसे जुदा कर दिया..!
उम्रभर साथ चलने का वादा किया,छोड़ तनहा मुझे अलविदा कर दिया..!!

एक मंज़िल से भटका मुसाफिर था वो,
रास्ते में मिला हमसफ़र बन गया,
उसने माँगी थी मुझसे जरा सी दुआ,साथ मैंने ही उसके खुदा कर दिया..!!

रिश्ते-नाते निभाए ज़माना हुआ,
अब तो जज़्बात से खेलते हैं सभी,
पहले उसने मुझे खुद से बेखुद किया,चूकते ही नज़र गुमशुदा कर दिया..!!

मैं खतावार उसको नहीं मानता,
फ़र्ज़ दोनों ने अपना है पूरा किया,
कर वफ़ा मुझको हांसिल जुदाई हुई,उसने हक़ बेवफा का अदा कर दिया..!!

होगी तकलीफ थोड़ी तो सह लूंगा मैं,
गुज़री यादों के साये में रह लूंगा मैं,
दोस्तों,कैसे दूँ अब उसे बददुआ,जिसपे “वीरान” दिल था फ़िदा कर दिया..!!

कद्र मेरी ना समझी

कद्र मेरी ना समझी खुदगर्ज जमाने ने,
मेरी कीमत को आंका शहर के बुतखाने ने,
कुसूर तेरा न था सब खतायें मेरी थी,
खुद को बर्बाद कर लिया तुम्हे आजमाने में,
जिन जमीनों पर तुमने पैरों के निशान छोडे हैं,
वहीं सजदे किये हैं तेरे इस दिवाने ने,
तेरे दिल के अंजुमन से जब रुख्सत हो गये,
तब कहीं पनाह दी हमें इस मयखाने ने!

जिन्दंगी को समझना

जिन्दंगी को समझना बहुत मुशकिल हैं. कोई सपनों की खातिर “अपनों” से दूर रहता हैं..
और , कोई “अपनों” के खातिर सपनों से दूर …!!