मुहब्बत उठ गयी दोनों घरों से….!!
सुना है एक ख़त पकड़ा गया है….!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मुहब्बत उठ गयी दोनों घरों से….!!
सुना है एक ख़त पकड़ा गया है….!!
जब से तुम्हारी नाम की मिसरी होंठ लगायी है
मीठा सा ग़म है, और मीठी सी तन्हाई है|
सफ़र शुरू कर दिया है मैंने,
बहोत जल्द तुमसे दूर चला जाऊँगा|
ये महज़ इत्तेफाक है,या मेरी खता…
आज फ़िर किसी को ‘भा’ गया हूँ मैं !
मेरी नज़र में तो सिर्फ तुम हो, कुछ और मुझको पता नहीं है तुम्हारी महेफिल से उठ रहा हूँ, मगर कहीं रास्ता नहीं है|
यूं तो भीड़ बहुत हुआ करती थी महफिल में मेरी
फिर मैं सच बोलता गया और लोग उठते गये
उसने मिलने की अजीब शर्त रखी…
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गालिब चल के आओ सूखे पत्तों पे,
लेकिन कोई आहट न हो!
देखी है दरार आईने में आज मैने…
पता नही ‘शीशा’ टूटा हुआ था या ‘मै’|
ज़ख़्मों के बावजूद मेरा हौसला तो देख….तुम हँसे तो हम भी तेरे साथ हँस दिए….!!
पहले तो यूं ही गुज़र जाती थी,
मोहब्बत हुई तो रातों का एहसास हुआ !