बहते हैं आँसूं तो मुस्कुराता हूँ मैं
यूँ भी तो तेरी यादें बाहर आए कभी…
Tag: व्यंग्य
दामन को फैलाये बैठे हैं
दामन को फैलाये बैठे हैं अलफ़ाज़-ए-दुआ कुछ याद नही
माँगू तो अब क्या माँगू जब तेरे सिवा कुछ याद नही|
क़ैद हो जाती है
जहाँ कमरों में क़ैद हो जाती है
‘जिंदगी’ लोग उसे शहर कहते हैं…!!
दिल में है कुछ
दिल में है कुछ खलबली, मन में अंतर्द्वन्द्व।
राह अनेकों हैं मग़र, सबकी सब हैं बन्द।।
बिलकुल बेकार नहीं हूँ
बिलकुल बेकार नहीं हूँ मैं,
नाकामियों की मिसाल के काम आता हूँ मैं|
ज़बाँ तक जो न आए
ज़बाँ तक जो न आए वो मोहब्बत और होती है…
फ़साना और होता है हक़ीक़त और होती है…
जो भी करता हूँ
जो भी करता हूँ साहब बेहिसाब करता हूँ…..
यहीं अंदाज़ है मेरा यहीं कमज़ोरी भी…..!!
लुटा के हर चीज़
लुटा के हर चीज़ मंजिल ऐ इश्क़ की राह में !!
हंस पड़ा हूँ मैं आज खुद को बर्बाद देख के !!
मैं सर के बल
मैं सर के बल गिरा था गुनाहों के बोझ से
दुनिया समझ रही थी के सजदे मैं पडा है
मैं जब गया सजदे मैं तो लोगों ने ये कहा
ज़ालिम ने बहुत पी ली जो मदहोश पडा है…
पता नही होश में
पता नही होश में हूँ या बेहोश हूँ मैं
पर बहुत सोच समझकर खामोश हूँ मैं…