कुछ जख़्मों की कोई उम्र नही होती…साहेब
ताउम्र साथ चलते है ज़िस्म के ख़ाक होने तक…….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कुछ जख़्मों की कोई उम्र नही होती…साहेब
ताउम्र साथ चलते है ज़िस्म के ख़ाक होने तक…….
फांसलो का अहेसास तो तब हुआ,
जब मैंने कहा मैं ठीक हूँ और उसने मान लिया !!
रो पड़ा वो शक्स आज अलविदा कहते-कहते,
जो कभी मेरी शरारतो पर देता था धमकियाँ जुदाई की !!
जिस नजाकत से…
ये लहरें मेरे पैरों को छूती हैं..
यकीन नहीं होता…
इन्होने कभी कश्तियाँ डुबोई होंगी…
इस शहर में मज़दूर जैसा दर-बदर कोई नहीं..
जिसने सबके घर बनाये उसका घर कोई नहीं..
हर बार रिश्तों में और भी मिठास आई है,
जब भी रूठने के बाद तू मेरे पास आई है !!
ये सगंदिलो की दुनिया है,संभलकर चलना गालिब, यहाँ पलकों पर बिठाते है, नजरों से गिराने के लिए…
दिल रोता है चेहरा हँसता रहता है कैसा कैसा फ़र्ज़ निभाना होता है..
जो गुज़ारी न जा सकी हम से हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
ज़िंदगी जिनसे हो ख़फ़ा, उनसे रूठ जाती है मौत भी शायद