ख़ामियों को गिन रहा हूँ

ख़ामियों को गिन रहा हूँ ख़ुद से रूबरू होकर ….. जो आईने से ज़्यादा अपनों ने बयाँ की हैं

ज्यादा कुछ नही

ज्यादा कुछ नही बदला उम्र बढ़ने के साथ… बचपन की जिद समझौतों में बदल गयी…!!

यही हुस्नो-इश्क का राज है

यही हुस्नो-इश्क का राज है कोई राज इसके सिवा नहीं जो खुदा नहीं तो खुदी नही, जो खुदी नहीं तो खुदा नहीं

हमने काँटों को भी

हमने काँटों को भी नरमी से छुआ है.. लोग बेदर्द हैं जो फूलो को भी मसल देते हैं..

इतनी बिखर जाती है

इतनी बिखर जाती है तुम्हारे नाम की खुशबु मेरे लफ़्जों मे..! की लोग पुछने लगते है “इतनी महकती क्युँ है शायरी तुम्हारी..??

देखे हैं बहुत हम ने

देखे हैं बहुत हम ने हंगामे मोहब्बत के आग़ाज़ भी रुस्वाई …..अंजाम भी रुस्वाई….

ख़ुश हो ऐ दिल

ख़ुश हो ऐ दिल कि मोहब्बत तो निभा दी तू ने लोग उजड़ जाते हैं अंजाम से पहले पहले

हमारे बाद अंधेरा

हमारे बाद अंधेरा रहेगा महफ़िल में बहुत चराग़ जलाओगे रौशनी के लिए

आज वो मशहूर हुए

आज वो मशहूर हुए, जो कभी काबिल ना थे.. मंज़िलें उनको मिली, जो दौड़ में शामिल ना थे.!!

अब ना करूँगा

अब ना करूँगा अपने दर्द को बयाँ किसीके सामने, दर्द जब मुझको ही सहना है तो तमाशा क्यूँ करना !!

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