लफ़्ज़ों से ग़लतफ़हमियाँ बढ़ रहीं है
चलो ख़ामोशियों में बात करते हैं.
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
लफ़्ज़ों से ग़लतफ़हमियाँ बढ़ रहीं है
चलो ख़ामोशियों में बात करते हैं.
पाया भी उन को खो भी दिया चुप भी हो रहे,
इक मुख़्तसर सी रात में सदियाँ गुज़र गईं…
कोई होंठों पे उंगली रख गया था…
उसी दिन से मैं लिखकर बोलता हुँ|
इश्क की हिमाकत जो उनसे कर बैठे यूँ ही हम खुदसे बिछड़ बैठे !!!
उसने ऐसी चाल चली के मेरी मात यकीनी थी,
फिर अपनी अपनी किस्मत थी,
हारी मैं, पछताया वो…..!!!!!!
तुम मेरे लिए रेत क्यों हुए…पहाड़ क्यों न हुए ?
तुम मेरे लिए पहाड़ क्यों हुए…रेत क्यों न हुए ?
रेत…पहाड़…मैं…सब वही
सिर्फ… “तुम” बदल गए
पहली बार भी
और
फिर…आखिरी बार भी…
ये तो कहिए इस ख़ता की क्या सज़ा,
ये जो कह दूं के आप पर मरता हूं मैं।।
इश्क़ का रंग और भी गुलनार हो जाता है….
जब दो शायरों को एक दुसरे से प्यार हो जाता है|
शिकवा तकदीर का, ना शिकायत अच्छी,
वो जिस हाल में रखे, वही ज़िंदगी अच्छी
मैं रुठा जो तुमसे तुमने हमें मनाया भी नहीं ,
अपनी मोहब्बत का कुछ हक जताया भी नहीं !!