किससे और कब

मोहब्बत किससे और कब हो जाये अदांजा नहीं होता..!

ये वो घर है, जिसका दरवाजा नहीं होता.

चांद की तरह

तू बिल्कुल चांद की तरह है…

ए सनम..,

नुर भी उतना ही..

गरुर भी उतना ही..

और दूर भी उतना ही.!.

कभी इतना मत

कभी इतना मत मुस्कुराना की नजर लग जाए

जमाने की हर आँख मेरी तरह मोहब्बत की नही होती….!!!

कोई मुझ से

कोई मुझ से पूछ बैठा
‘बदलना’ किस को कहते हैं?
सोच में पड़ गया हूँ मिसाल किस की दूँ ?
“मौसम” की या “अपनों” की

बदल गया वक़्त

बदल गया वक़्त बदल गयी बातें बदल गयी

मोहब्बत कुछ नहीं बदला तो वो है

इन आँखों की नमी और तेरी कमी !!