लिपट जाता हूँ माँ

लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है
उछलते खेलते बचपन में बेटा ढूँढती होगी
तभी तो देख कर पोते को दादी मुस्कुराती है
तभी जा कर कहीं माँ-बाप को कुछ चैन पड़ता है
कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुस्कुराती है
चमन में सुबह का मंज़र बड़ा दिलचस्प होता है
कली जब सो के उठती है तो तितली मुस्कुराती है
हमें ऐ ज़िन्दगी तुझ पर हमेशा रश्क आता है
मसायल से घिरी रहती है फिर भी मुस्कुराती है
बड़ा गहरा तअल्लुक़ है सियासत से तबाही का
कोई भी शहर जलता है तो दिल्ली मुस्कुराती है ।

यादों की हवा

सारा दिन गुजर जाता है,
खुद को समेटने में,
फिर रात को उसकी यादों की हवा चलती है,
और हम फिर बिखर जाते है!

याद से जाते नहीं

याद से जाते नहीं, सपने सुहाने और तुम,
लौटकर आते नहीं, गुज़रे ज़माने और तुम,
सिर्फ दो चीज़ें कि जिनको खोजती है ज़िंदगी,
गीत गाने, गुनगुनाने के बहाने और तुम..