शहर में देखो जवानी में बुढ़ापा आ गया
पर बुढ़ापे में जवानी, है अभी तक गांव मे
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बात वक्त वक्त की
है बात वक्त वक्त की चलने की शर्त है
साया कभी तो कद के बराबर भी आएगा
कोई ले रहा मजे
कोई ले रहा मजे बरिश मे भीग कर!!
कोई रो रहा बरिश से बरबाद होकर”
आखिर लिखूं तो क्या लिंखू
जब दर्द होता है
जब दर्द होता है …तुम बहुत याद आते हो
जब तुम याद आते हो…बहुत दर्द होता है
इक निगह कर के
इक निगह कर के उसने मोल लिया
बिक गए आह, हम भी क्या सस्ते
जो दिल के दर्द
जो दिल के दर्द को भुलाने को दारु पीता है, वो चखना नहीं खाता
चखना तो कमीने दीलासा देने वाले साफ कर जाते है|
दहर में उनके
या न था दहर में उनके सिवा जालिम कोइ,
या सिवा मेरे कोई और गुनहगार न था।
दिल ए तबाह
दिल ए तबाह को ज़ख़्मों की कुछ कमी तो नहीं
मगर है दिल की ये तमन्ना तुम एक वार और करो
मोहब्बत क्यूँ करेगी
सियासत भी तवायफ़ है मोहब्बत क्यूँ करेगी वो
भला किस वक्त घुंघरू इसके मक्कारी नहीं करते
अपना ही चेहरा
बीवी, बच्चे, सड़कें, दफ्तर और तनख्वाह के चक्कर में
मैं घर से अपना ही चेहरा पढ़कर जाना भूल गया