तेरा ही जिक्र होता है

तेरा ही जिक्र होता है हर एक अल्फाज में मेरे.. वो भी इस सलीके से कि, कहीं तू बदनाम ना हो जाए..!!

मुझ से ही रूठ कर

मुझ से ही रूठ कर मुझे ही याद करते हो… .तुम्हें तो ठीक से नाराज़ होना भी नहीं आता|

सजदा कहूँ या कहूँ

सजदा कहूँ या कहूँ इसे मोहब्बत तेरे नाम में आये अक्षर भी हम मुस्कुरा कर लिखा करते हैं

किसी रोज़ शाम के वक़्त

किसी रोज़ शाम के वक़्त… सूरज के आराम के वक़्त… मिल जाये साथ तेरा… हाथ में लेके हाथ तेरा…

कोई खूबसूरत सी दुआ

कोई खूबसूरत सी दुआ कूबूल की उस खुदा नें जो आमीन की तरह मुझे तुम मिले हो |

दोनों को मालूम है

खुशहाली में एक बदहाली तू भी है और मैं भी हूँ हर निगाह पर एक सवाली तू भी है और मैं भी हूँ दुनिया कुछ भी अर्थ लगाये हम दोनों को मालूम है मगर भरे भरे पर खाली खाली तू भी है और मैं भी हूँ..

एक सिलसिले की उम्मीद

एक सिलसिले की उम्मीद थी जिनसे; वही फ़ासले बनाते गये! हम तो पास आने की कोशिश में थे; ना जाने क्यूँ वो हमसे दूरियाँ बढ़ाते गये!

ठंडी कर देती है

उसकी यादें अक्सर मेरी चाय ठंडी कर देती है !

एक लम्हा भी

एक लम्हा भी मसर्रत का बहुत होता है, लोग जीने का सलीका ही कहाँ रखते हैं।

बेशुमार दिल मिलते हैं

एक बाज़ार है ये दुनिया… सौदा संभाल के कीजिए… मतलब के लिफ़ाफ़े में… बेशुमार दिल मिलते हैं…

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