भरे बाज़ार से

भरे बाज़ार से अक्सर मैं खाली हाथ लौट आता हूँ..
पहले पैसे नहीं हुआ करते थे, अब ख्वाहिशें नहीं रहीं….

मौसम फिर से

आज ये

मौसम फिर से करवा रहा है मुझसे शायरी…..!!
वरना इस दिल के

जज़्बातों को दबे तो ज़माना हो गया…..!!

किससे और कब

मोहब्बत किससे और कब हो जाये अदांजा नहीं होता..!

ये वो घर है, जिसका दरवाजा नहीं होता.

चांद की तरह

तू बिल्कुल चांद की तरह है…

ए सनम..,

नुर भी उतना ही..

गरुर भी उतना ही..

और दूर भी उतना ही.!.

कभी इतना मत

कभी इतना मत मुस्कुराना की नजर लग जाए

जमाने की हर आँख मेरी तरह मोहब्बत की नही होती….!!!