वो जज़्बात थे

कागज़ पर उतारे
कुछ लफ्ज़,
ना खामखा थे..
ना फ़िज़ूल थे..
ये वो जज़्बात थे..
लब जिन्हें कह ना पाएं
थे कभी…!!

कुछ बन जाऊ

माना की आज इतना वजुद नही हे मेरा पर…

बस उस दिन कोई पहचान मत निकाल लेना जब मे कुछ बन जाऊ…

शायरी कि जुँबा

लगने दो आज महफिल ….
शायरी कि जुँबा में बहते है ….
.
तुम ऊठा लो किताब गालिब कि ….
हम अपना हाल ए दिल कहते है