यूँ तो हमारे बीच …कोई दूरियां न थी.
हमारे बेरुखी ने… बीच मीलों फासले किये..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
यूँ तो हमारे बीच …कोई दूरियां न थी.
हमारे बेरुखी ने… बीच मीलों फासले किये..
तू भेज रंग मुहब्बत
के वहाँ से
हम भीगेगे उस
बरसात में यहां से……..
मुझमें डूबोगे नहीं तो भला जानोगे कैसे ?
दर्द का समुन्दर आखिर कितना गहरा है
उलझने क्या बताऊँ ज़िंदगी की..
तेरे ही गले लगकर,
तेरी ही शिकायत करनी है मुझे..
तुम ने वादा किया था मेरे संग चलने का ….
फिर ये फन कहाँ से सीखा रास्ता बदलने का …
झूठ बोलने का रियाज़ करता हूँ, सुबह और शाम में;
सच बोलने की अदा ने हमसे कई अज़ीज़ छीन लिए।
दुनिया में बहुत कम लोग,
आपका दुःख समझते है बाकी तो सब कहानी सुनना
पसंद करते है.
तुमसे मिलने की तलब, कुछ इस तरह लगी है “साहब”;
जिस तरह से कोई मयकश, मयखाने की तलाश करता है !!
ख़ुशी दे या गम दे दे
मग़र देते रहा कर
तू उम्मीद है मेरी…
तेरी हर चीज़ अच्छी लगती है…
आज फिर बैठे है इक हिचकी के इंतज़ार में…!
पता तो चले वो हमें कब याद करते है …