वो वक़्त का जहाज़ था करता लिहाज़ क्या
मैं दोस्तों से हाथ मिलाने में रह गया |
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
वो वक़्त का जहाज़ था करता लिहाज़ क्या
मैं दोस्तों से हाथ मिलाने में रह गया |
फिर वार हुआ दिल की दिवारो पर…
फिर ऐसे जख्म मिलें है कि हम मरहम ना ढुंढ पाए…
उड़ना…. बेख़ौफ़
कहाँ आसान था….
मन तभी चिड़िया हुआ
जब तू आसमान था ….!
एक एक पन्ना हर कोई बांट लेते है मतलब की…
सुबह-सुबह मां घर में अखबार जैसे हो जाती है…
सबूतों और गवाहों की साहब… यहाँ सेल नहीं होती,
आपने जुर्म-ए-मोहब्बत किया है, इसमें बेल नहीं होती।
शाख़ें रहीं तो फूल और पत्ते भी ज़रूर आयेंगे…
ये दिन अगर बुरे हैं तो अच्छे भी ज़रूर आयेंगे…!!!
जरा देखो तो ये दरवाजे पर दस्तक किसने दी है,
अगर ‘इश्क’ हो तो कहना, अब दिल यहाँ नही रहता..
कैसे ज़िंदा रहेगी तहज़ीब ज़रा सोचिये…..
पाठशाला से ज़्यादा तो मधुशाला है शहर में..
जिंदगी में बेशक हर मौके का फायदा उठाओ !!
मगर, किसी के भरोसे का फ़ायदा नहीं !!
बेजुबान पत्थर पे लदे है करोंडो के गहने मंदिरो में ।
उसी दहलीज पर एक रूपये को तरसते नन्हें हाथों को देखा है।