घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला…!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला…!
जिनसे अक्सर रूठ जाते हैं हम
असल में उन्ही से रिश्ते गहरे होते हैं…
हम-सफ़र चाहिए हुजूम नहीं..
इक मुसाफ़िर भी क़ाफ़िला है मुझे..
मकान बन जाते है कुछ हफ्तों में,
ये पैसा कुछ ऐसा है…और घर टूट जाते है
चंद पलो में, ये पैसा ही कुछ ऐसा है..।।
वो बोले मुझे विरानियाँ पसँद है,
हमने कहा मेरे दिल की सैर कर लो
याद ही नहीं रहता कि लोग
छोड़ जाते हैं.
आगे देख रहा था, कोई पीछे से चला गया|
तेरा आधे मन से मुझको मिलने आना,
खुदा कसम मुझे पूरा तोड़ देता है…
चलो तोड़ते हैं आज मोहब्बत के सारे के उसूल अपने,अब से बेवफाई और दगाबाज़ी दोनों हम करेंगे!
सिसकना,भटकना,और फिर थम जाना….
बहुत तकलीफ देता है, खुद ही संभल जाना|
शक से भी अक्सर खत्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते..
कसूर हर बार गल्तियों का नही होता |