अब मूहँ छूपा के क्यों रोता है
मेरे सीने में ऐ दिल….
मेरी तू सुनता ही कब था….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
अब मूहँ छूपा के क्यों रोता है
मेरे सीने में ऐ दिल….
मेरी तू सुनता ही कब था….
हसीन आँखों को पढ़ने का अभी तक शौक है
मुझको,…
मुहब्बत में उजड़ कर भी मेरी ये आदत
नहीं बदली…
उसकी जरूरत उसका इंतजार
और ये तन्हा आलम,
थक कर मुस्कुरा देते है
हम जब रो नहीं पाते…!!
मुझे तो पहले से ही यकीन
था तेरी फितरत पर,
बस तेरा नज़रें फेर के
जाते हुए देखना बाकी था|
मुझको मेरी शक्ल आज लग रही है अजनबी..
ना जाने कौन मेरे घर के आईने बदल गया…!!
गलत निकलेगा तेरा अन्दाजा। वक़्त मेरा भी सही आयेगा ।
ज़िन्दगी बहुत ख़ूबसूरत है,
सब कहते थे।
जिस दिन तुझे देखा,
यकीन भी हो गया।
मेरी गलती करने की आदत नहीं फिर भी करता हूँ,
क्योंकि अच्छा लगता है तेरा प्यार से समझाना..!
मेरी ज़िन्दगी में खुशियाँ
तेरे बहाने से हैं .. आधी
तुझे सताने से हैं,
आधी तुझे मनाने से हैं…
न जाने इस जिद का नतीजा क्या होगा,
समझता दिल भी नहीं
मै भी नहीं और तुम भी नही|