हम तो वाकिफ थे उनके अंदाज से
पर वो बेवफा कब हुए पता ही नही चला|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
हम तो वाकिफ थे उनके अंदाज से
पर वो बेवफा कब हुए पता ही नही चला|
छोटी सी बात पे ख़ुश होना मुझे आता था..
पर बड़ी बात पे चुप रहना तुम्ही से सीखा..
कफन उठाओ ना मेरा जमाना देख ना ले..मै सो गया हूँ तेरी निशानिया लेकर….!!
ये आशकी तुझसे शुरू तुझपे खत्म ये
शायरी तूझसै शुरू तूझपै खत्म तैरै लीए
ही सासैं मिली है तेरे लीए ही लीया है
जन्म यै जिदंगी तुझसै शूरू तुझपै खत्म |
कल अचानक देखा तरसी निग़ाहों को
किताबे आज भी छाती से लग के सोना चाहती है|
तुम्हे क्या पता, किस दर्द मे हूँ मैं..
जो लिया नही, उस कर्ज मे हूँ मैं..
बात इतनी सी थी क़ि
तुम अच्छे लगते हो ,
अब बात इतनी बढ़ गयी क़ि
तुम बिन कुछ अच्छा नहीं लगता ।
जिसको तलब हो हमारी,
वो लगाये बोली,
सौदा बुरा नहीं..
बस “हालात” बुरे है.!
ज़िन्दगी तूने लहू ले के दिया कुछ भी नहीं|
तेरे दामन में मेरे वास्ते क्या कुछ भी नहीं|
मेरे इन हाथों की चाहो तो तलाशि ले लो,
मेरे हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं|
हमने देखा है कई ऐसे ख़ुदाओं को यहाँ,
सामने जिन के वो सच मुच का ख़ुदा कुछ भी नहीं|
या ख़ुदा अब के ये किस रंग से आई है बहार,
ज़र्द ही ज़र्द है पेड़ों पे हरा कुछ भी नहीं|
दिल भी इक ज़िद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह,
या तो सब कुछ ही इसे चाहिये या कुछ भी नहीं|
इंतज़ार की आरज़ू अब खो गयी है,
खामोशियो की आदत हो गयी है,
न सीकवा रहा न शिकायत किसी से,
अगर है तो एक मोहब्बत,
जो इन तन्हाइयों से हो गई है..!