एक जैसी ही दिखती थी
माचिस की वो तीलियाँ..
कुछ ने दिये जलाये..
और कुछ ने घर..!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
एक जैसी ही दिखती थी
माचिस की वो तीलियाँ..
कुछ ने दिये जलाये..
और कुछ ने घर..!
डरते हैं उस पंछी के आशियाँ के उजड़ने से
हम भी उजड़े थे…
किसी तूफान में.. यूँ ही..
उस रात से हम ने सोना ही छोड़ दिया
‘यारो’
जिस रात उस ने कहा कि
सुबह आंख खुलते ही हमे भूल जाना..
दिल गवारा नहीं करता है शिकस्त-ए-उम्मीद
हर तग़ाफ़ुल पे नवाज़िश का गुमाँ होता है |
किसी के पास टुटा हुआ दिल है क्या..
आधा मेरे वाला जोड़के एक नया दिल बनाना था… !!
सोचते रहे ये रातभर. हम करवट बदल बदलकर…
.
जानें क्या बात है तुम में दिल कहीं और लगता ही नहीं…
धीरे-धीरे ही सही,
उन्हे भी आ गया
तज़ुर्बा भूलने का;
काश हमे भी यूँ,
भूलने का करिश्मा आ जाए….. !!
पहचान की नुमाईश
जरा कम करो यारों जहाँ
भी “मैं” लिखा है
उसे “हम” करो यारों…..
तुम आते थे
बहार आती थी
एक एक लम्हा
महका जाती थी
अब तुम जो नही हो
तुम्हारी यादें आती हैं
दिल के ज़ख़्मों को
कुरेद जाती हैं|
ठंडी रोटी अक्सर उनके ही नसीब में होती है
जो अपनों के लिए कमाई करके देर से घर लौटते हैं..