मुहब्बत ना तेरी है ना मेरी है,
ये तो बस लफ्जों की है…!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मुहब्बत ना तेरी है ना मेरी है,
ये तो बस लफ्जों की है…!!
वो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ में
जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नहीं जाता !
बेनाम सा ये..
आशियाना बनाये भी तो कहाँ बनाये…
जमीन महँगी हो चली हैं…
और… दिल में लोग जगह नहीं देते…
लिख कर बयां नही कर सकते हम हर गुफ़्तुगू,
कुछ था जो बस नज़रों से नज़रों तक ही रहा।
रिश्तों की बगिया में एक रिश्ता
नीम के पेड़ जैसा भी रखना,
जो सीख भले ही कड़वी देता हो
पर तकलीफ में मरहम भी बनता है……
मै फिर से निकलूंगा तलाश -ए-जिन्दगी में..
दुआ करना दोस्तों इस बार किसी से इश्क ना हो..!
वो धड़कनों की धमक से डरने लगे है..
गले कैसे लगाऊँ इतने नाज़ुक है वो..!
इश्क है या इबादत.. अब कुछ समझ नहीं आता,
एक खुबसूरत ख्याल हो तुम जो दिल से नहीं जाता….
तन्हाइयों के लम्हें अब तेरी यादों का पता पूछते हैं…!!
तुझे भूलने की बात करूँ तो ये तेरी खता पूछते हैं…!!
अजीब रंगो में गुज़री है मेरी ये ज़िन्दगी…!!
दिलों पर राज किया पर मोहब्बत को तरस गए…!!