अनजाने शहर में

अनजाने शहर में अपने मिलते है कहाँ
डाली से गिरकर फूल फिर खिलते है कहाँ . . .
आसमान को छूने को रोज जो निकला करे
पिँजरे में कैद पंछी फिर उड़ते है कहाँ . . .
दर्द मिलता है अक्सर अपनो से बिछड़कर
टूट कर आईने भला फिर जुड़ते है कहाँ . . . .
ले जाते है रास्ते जिंदगी के दूर बहुत
मील के पत्थर जमे फिर हिलते है कहाँ . . .
दिल कहाँ कह पाता है औरों को अपनी भला
जख्म हुए गहरे गर फिर भरते है कहाँ . . . .
ले चल खुदा फिर मुझे मेरे शहर की ओर
जीने के अवसर भला फिर मिलते है कहाँ . .

कुछ देखा नहीं मैंने

झुकती पलकें,उभरती साँसें,मौन होंठ,बोलती

आँखें,सिमटती हया और खुले बाल,

सच कहूँ तुमसे बेहतर जँहा में कुछ देखा नहीं मैंने।

इन आँखों में

इन आँखों में, आज फिर नमी सी है…
इस दिल में आज फिर तेरी कमी सी है!!

नहीं भूलती वो तेरी बातें…
याद आ गईं फिर,वो मुलाकातें !!!