हुआ था शोर पिछली रात को……
दो “चाँद” निकले हैं,
बताओ क्या ज़रूरत थीं
“तुम्हे” छत पर टहलने की
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
हुआ था शोर पिछली रात को……
दो “चाँद” निकले हैं,
बताओ क्या ज़रूरत थीं
“तुम्हे” छत पर टहलने की
बड़े सुकून से वो रहता है
आज कल मेरे बिना,
जैसे किसी उलझन से
छुटकारा मिल गया हो उसे…
कोई ऐसी सुबह भी मिले मुझे,
के मेरी आँख खुले तेरी आवाज से..
जो तालाबों पर चौकीदारी करते हैँ…
वो समन्दरों पर राज नहीं कर सकते..!!!
बस यही सोच कर हर मुश्किलों से लड़ता आया हूँ…!
धूप कितनी भी तेज़ हो समन्दर नहीं सूखा करते…।।
एक मुद्दत से तुम निगाहों में समाए हो…!
एक मुद्दत से हम होंश में नहीं हैं ..!!
कभी कभी कुछ घाव खुद कि खरोंचों के होते है..
पहाड़ों के क़दों की खाइयाँ हैं
बुलन्दी पर बहुत नीचाइयाँ हैं
है ऐसी तेज़ रफ़्तारी का आलम
कि लोग अपनी ही ख़ुद परछाइयाँ हैं
गले मिलिए तो कट जाती हैं जेबें
बड़ी उथली यहाँ गहराइयाँ हैं
हवा बिजली के पंखे बाँटते हैं
मुलाज़िम झूठ की सच्चाइयाँ हैं
बिके पानी समन्दर के किनारे
हक़ीक़त पर्वतों की राइयाँ हैं
गगन छूते मकां भी, झोपड़े भी
अजब इस शहर की रानाइयाँ हैं
दिलों की बात होठों तक न आए
कसी यूँ गर्दनों पर टाइय़ाँ हैं
नगर की बिल्डिंगें बाँहों की सूरत
बशर टूटी हुई अँगड़ाइयाँ हैं
कागज़ पर उतारे
कुछ लफ्ज़,
ना खामखा थे..
ना फ़िज़ूल थे..
ये वो जज़्बात थे..
लब जिन्हें कह ना पाएं
थे कभी…!!
ख्वाहिश भले छोटी सी हो लेकिन…
उसे पूरा करने के लिए
दिल ज़िद्दी सा होना चाहिए..