मेरी शायरियों से तंग आ जाओ,
तो बता देना मुझे
नफरत सहन कर लेंगे
मगर दिखावे का प्यार नही|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मेरी शायरियों से तंग आ जाओ,
तो बता देना मुझे
नफरत सहन कर लेंगे
मगर दिखावे का प्यार नही|
इश्क की गहराइयों में खूबसुरत क्या है,
मैं हूँ…तुम हो…कुछ और की जरुरत क्या है..
भूख फिरती है मेरे शहर में नंगे पाँव..
रिज़्क़ ज़ालिम की तिजोरी में छिपा बैठा है।
गर्दन पर निशान तेरी साँसों के…
कंधे पर मौजूद तेरे हाथ का स्पर्श…
बिस्तर पर सलवटें…
तकिये पे लगे दाग..
चादर का यूँ मुस्कुराना..
शायद, तुम ख्वाब में आए थे…!
लफ्ज लफ्ज जोड़कर बात कर पाता हूं
उसपे कहते हैं वो कि, मैं बात बनाता हूं….
खामोश सा माहोल
और बैचन सी करवट हैं,
ना आँख लग रही हैं,
ना रात कट रही हैं…
क्यों बनाते हो गजल मेरे अहसासों की
मुझे आज भी जरुरत है तेरी सांसो की
अब ये न पूछना कि
ये अल्फ़ाज़ कहाँ से लाता हूँ…
कुछ चुराता हूँ
दर्द दूसरों के कुछ
अपनी सुनाता हूँ..!!
भुला दूंगा तुझे
ज़रा सब्र तो कर..
.
तेरी तरह मतलबी बनने में
थोड़ा वक़्त तो लगेगा
ना चाहते हुए भी तेरे
बारे में बात हो गई,
.
कल आईने में तेरे
दिवाने से मुलाक़ात हो गई..!!