चाँद तारो में नज़र आये चेहरा आपका
जब से मेरे दिल पे हुआ है पहरा आपका|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
चाँद तारो में नज़र आये चेहरा आपका
जब से मेरे दिल पे हुआ है पहरा आपका|
ग़म किस तरह हो कम जो मिले ऐसे ग़म-गुसार,
ग़म की नज़ाकतों को जो पहचानते नहीं..
मेरी आँखों से बना तेरी आँखों का चेहरा,
गैरो की आँखों से जो देखा नहीं जाता।।
सहानुभूति नहीं, इश्क़ ग्रन्थ हो तुम,
जिसे सरेआम नासमझों के बीच फेंका नहीं जाता।।
न कायदे न फायदे…
न राहत न सुकूँ….
फिर भी तू मोहब्बत है मेरी
जिन्दगी में नहीं फिर भी सफ़र में हूँ…तेरे!!
न तेरी अदा समझ में आती है ना आदत ऐ ज़िन्दगी,
तू हर रोज़ नयी सी,हम हर-रोज़ वही उलझे से..
मुहब्बत ना तेरी है ना मेरी है,
ये तो बस लफ्जों की है…!!
वो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ में
जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नहीं जाता !
बेनाम सा ये..
आशियाना बनाये भी तो कहाँ बनाये…
जमीन महँगी हो चली हैं…
और… दिल में लोग जगह नहीं देते…
लिख कर बयां नही कर सकते हम हर गुफ़्तुगू,
कुछ था जो बस नज़रों से नज़रों तक ही रहा।
रिश्तों की बगिया में एक रिश्ता
नीम के पेड़ जैसा भी रखना,
जो सीख भले ही कड़वी देता हो
पर तकलीफ में मरहम भी बनता है……