आज कल बडे खामोश है शायर सारे…
क्या बात है हमसफर नाराज है तुमसे या लफ्ज नाराज है हमसफर से …
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
आज कल बडे खामोश है शायर सारे…
क्या बात है हमसफर नाराज है तुमसे या लफ्ज नाराज है हमसफर से …
फासले कहाँ मोहब्बत को कम कर पाते हैं,
बिना मुलाकात के भी कई रिश्ते अक्सर साथ निभाते हैं
दिल से ज्यादा महफूज़ जगह कोई नही मगर,
सबसे ज्यादा लोग यहीं से ही लापता होते हैं।
आग भी क्या अजीब चीज़ है…
ख़ामोशी से भी लग जाती है…!!!
दिल में समा गई हैं क़यामत की शोख़ियाँ…
दो-चार दिन रहा था किसी की निगाह में….
फितरत किसी की यूँ ना आजमाया करिए साहब…
के हर शख्स अपनी हद में लाजवाब होता है…
सज़ा ये दी है कि आँखों से छीन लीं नींदें ,
क़ुसूर ये था कि जीने के ख़्वाब देखे थे|
मै रात भर सोचता रहा मगर फैंसला न कर सका,
तू याद आ रही है या मैं याद कर रहा हूँ…
ऐ समन्दर मैं तुझसे वाकिफ हूं
मगर इतना बताता हुँ,
वो आंखें तुझसे ज्यादा गहरी हैं
जिनका मैं आशिक हुँ..!
ना जाने रोज कितने लोग रोते रोते सोते है,
और फिर सुबह झूठी मुस्कान लेकर सबको सारा दिन खुश रखते है !!