इंतहा आज इश्क़ की

इंतहा आज इश्क़ की कर दी
आपके नाम ज़िन्दगी कर दी

था अँधेरा ग़रीब ख़ाने में
आपने आ के रौशनी कर दी

देने वाले ने उनको हुस्न दिया
और अता मुझको आशिक़ी कर दी

तुमने ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे बिखरा कर
शाम रंगीन और भी कर दी

कभी पलकों पे

कभी पलकों पे आंसू हैं, कभी लब पर शिकायत है..

मगर ऐ जिंदगी फिर भी, मुझे तुझसे मुहब्बत है..