साहिब ए अकल

साहिब ए अकल हो तो एक मशविरा तो दो….

एहतियात से इश्क करुं या इश्क से एहतियात…..

ख़ुद के लिए

ख़ुद के लिए या ख़ुदा के लिए जीने की तमन्ना थी,
तुम कब ज़िंदगी बन गए रूह को इल्म ही ना हुआ|