मेरी ऊंचाइयों को देखकर हैरान है बहुत से लोग…
,पर किसी ने मेरे पैरों के छाले नहीं देखे…।
Tag: पारिवारिक शायरी
मेरे सात बेठ के
मेरे सात बेठ के टाइम भी रोया एक दिन
केहने लगा बन्दा तु सही है मे हि खराब चल रहा हुं….
मां जो भी बनाए उसे
मां जो भी बनाए उसे बिना नखरे किये खा लिया करो
क्युंकि दुनिया में ऐसे लोग भी है जिनके पास या तो खाना नही होता या मां नही होती
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मेरी तक़दीर में एक
मेरी तक़दीर में एक भी गम न होता
अगर तक़दीर लिखने का हक़ मेरी माँ को होता.
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जो मांगू वो दे दिया
जो मांगू वो दे दिया कर…ऐ ज़िन्दग़ी …!!
तू बस…मेरी माँ की तरह बन जा…
यूँ तो शिकायतें
यूँ तो शिकायतें तुझसे सैंकड़ों हैं मगर,
तेरी एक मुस्कान ही काफी है सुलह के लिये…
बहोत कुछ छूट
बहोत कुछ छूट जाता है… “कुछ” पूरा करने में…
झूठ, लालच और फरेब
झूठ, लालच और फरेब से परे है, खुदा का शुक्र है आयने आज भी खरे है.”
जब वक़्त करवट लेता हैं
जब वक़्त करवट लेता हैं ना, दोस्तों…!!
…तो बाजियाँ नहीं, जिंदगियाँ पलट जाती है..!
बात करने से ही
बात करने से ही बात बनती है..
बात ना करने से, बातें बन जाती है ..!