सारा लहू बदन का,
जमी पर गिरा दिया…!
हम पर कर्ज था वतन
का हमने चुका दिया
भारत माता की जय
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
सारा लहू बदन का,
जमी पर गिरा दिया…!
हम पर कर्ज था वतन
का हमने चुका दिया
भारत माता की जय
गुस्ताखी माफ हो गुस्ताखी ,
क्योंकि हम तुम्हे जिन्दगी कह नही पाते ,
हाँ मगर तुम वो अहसास हो आते ,
जैसे जिन्दगी
तुम्हारे साथ साथ ही हो ,
या जिन्दगी का तुम ही आभास हो !
ये उड़ती ज़ुल्फें,ये बिखरी मुस्कान,
एक अदा से संभलूँ,तो दूसरी होश उड़ा देती है..!!
नज़दीक ही रहता है वो पर मिलने नही आता..
पुछो तो मुस्करा के कहता है..
तुम से तो मुहोब्बत है..
तुम से क्या मिलना..
लोग अब समझदार हो गए है….
हैसियत देख कर साथ निभाते है।
मुद्दतों बात किसी ने पूछा कहा रहते हो
हमने मुस्कुरा के कहा अपनी औकात मे|
ना चाहते हुए भी साथ छोड़ना पड़ता हे,
जिंदगी में कुछ मजबूरिया
मोहब्बत से ज्यादा ताकतवर होती हे !!
हम जा रहे हैं वहां जहाँ दिल की क़दर हो…
बैठे रहो तुम अपनी अदाएं लिए हुए !!
जनाजा रोक कर वो मेरा
कुछ इस अन्दाज़ मे बोले;
गली छोड्ने को कहा था,
तुमने तो दुनियां ही छोड दी।
मुमकिन नहीं है हर रोज मोहब्बत के नए, किस्से
लिखना……….!!
मेरे दोस्तों अब मेरे बिना अपनी, महफ़िल सजाना सीख
लो…….!!