माफ हो गुस्ताखी

गुस्ताखी माफ हो गुस्ताखी ,

क्योंकि हम तुम्हे जिन्दगी कह नही पाते ,

हाँ मगर तुम वो अहसास हो आते ,

जैसे जिन्दगी
तुम्हारे साथ साथ ही हो ,

या जिन्दगी का तुम ही आभास हो !

नज़दीक ही रहता है

नज़दीक ही रहता है वो पर मिलने नही आता..
पुछो तो मुस्करा के कहता है..
तुम से तो मुहोब्बत है..
तुम से क्या मिलना..

जनाजा रोक कर

जनाजा रोक कर वो मेरा
कुछ इस अन्दाज़ मे बोले;
गली छोड्ने को कहा था,
तुमने तो दुनियां ही छोड दी।

रोज मोहब्बत के नए

मुमकिन नहीं है हर रोज मोहब्बत के नए, किस्से
लिखना……….!!
मेरे दोस्तों अब मेरे बिना अपनी, महफ़िल सजाना सीख
लो…….!!