तुम इश्क़ की खैरात दे रहे हो मुझे
मैं बेवफा से दामन छुड़ा कर आया हूँ।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
तुम इश्क़ की खैरात दे रहे हो मुझे
मैं बेवफा से दामन छुड़ा कर आया हूँ।
बिखरने के बहाने तो बहुत मिल जायेगे…
आओ हम जुड़ने के अवसर खोजे…!!
मैं तो मोम था इक आंच में पिघल जाता…
तेरा सुलूक़ मुझे पत्थरों में ढाल गया….
दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है ,जो भी गुजरा है उसने लूटा है|
तेरे कुछ और करीब आना है मुझको,
समझले रकीबो को और जलाना है मुझको….
बेपता ख़त सा होता है मुकद्दर का मिज़ाज,
कोशिशों के पते ना मिले तो लौट जाता है…
अंतिम लिबास देखके घबरा न इस कदर ,,
रंगीनियाँ तो देख लीं सादा कफन भी देख..!!
लफ्जो की दहलीज पर ,घायल ज़ुबान है..
कोई तन्हाई से तो कोई, महफ़िल से परेशान है…
किसे यकीन होगा किस से जा के कहें।।
एक बुझे हुवे चराग़ से मेरा हाथ जल गया।।
सुलगती रेत में अब पानी की तलाश नही
मगर ये कब कहा हमने .की हमे प्यास नही