ज़मीं पर आओ

ज़मीं पर आओ फिर देखो हमारी अहमियत क्या है
बुलंदी से कभी ज़र्रों का अंदाज़ा नहीं होता|

सुंदरता हो न हो

सुंदरता हो न हो
सादगी होनी चाहिये.
खुशबू हो न हो
महक होनी चाहिये.
रिश्ता हो न हो
बंदगी होनी चाहिये.
मुलाकात हो न हो
बात होनी चाहिये.
यु तो हर कोई उलझा है अपनी उलझनों मे
सुलझन हो न हो
सुलझाने कि कोशिश होनी चाहिये।

हर घड़ी ख़ुद से

हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा

एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे
मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा

किससे पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ बरसों से
हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा

मुद्दतें बीत गईं इक ख़्वाब सुहाना देखे
जागता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा

आईना देखके निकला था मैं घर से बाहर
आज तक हाथ में महफ़ूज़ है पत्थर मेरा|

हमने तो बेवफा के भी

हमने तो बेवफा के भी दिल से वफ़ा किया
इसी सादगी को देखकर सबने दगा किया
मेरी टिशनगी तो पी गयी हर जख्म के आँसू
गर्दिश मे आके हमने अपना घर बना लिया

उन परिंदो को

उन परिंदो को क़ैद करना मेरी फ़ितरत में नही…

जो मेरे पिंजरे में रह कर दूसरो के साथ उधना पसंद करते है…!!!

ये सोच कर

ये सोच कर की शायद वो खिड़की से झाँक ले
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उसकी गली के बच्चे आपस में लड़ा दिए मैंने !!