बैठ जाता हूँ अब खुले आसमान के नीचे तारो की छाँव मे,,,
अब शौक नही रहा महफिलो मे रंग जमाने का…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
बैठ जाता हूँ अब खुले आसमान के नीचे तारो की छाँव मे,,,
अब शौक नही रहा महफिलो मे रंग जमाने का…
आज उसने अपने हाथ से पिलायी है यारो,
लगता है आज नशा भी नशे मे है…
ये सुनकर मेरी नींदें उड़ गयी,
कोई मेरा भी सपना देखता है…
इस तरह सुलगती तमन्नाओं को बुझाया मैं ने,
करके रोशन यार की महफ़िल अपना घर जलाया मैंने…
इतना काफी है के तुझे जी रहे हैं,
ज़िन्दगी इससे ज़्यादा मेरे मुंह न लगाकर…!!
इस सलीक़े से मुझे क़त्ल किया है उसने,
अब भी दुनिया ये समझती है की ज़िंदा हूँ मैं….!!
अपने दिल से मिटा ड़ाली तेरे साथ की सारी तस्वीरें
आने लगी जो ख़ुशबू तेरे ज़िस्मों-जां से किसी और की…!!
मेरी मुहब्बत अक्सर ये सवाल करती है…
जिनके दिल ही नहीं उनसे ही दिल लगाते क्यूँ हो…
ताश के पत्तों में दरबदर बदलते चले गए…
इश्क़ में सिमटे तो ऐसे के बिखरते चले गए…
यूँ तो दिल ने बसायी थी एक दुनिया उनके संग…
रहने को जब भी निकले उजड़ते चले गए…
काम आ सकीं न अपनी वफ़ाएँ तो क्या करें
उस बेवफ़ा को भूल न जाएँ तो क्या करें |