तेरे होने पर

तेरे होने पर भी ये जो अकेलापन मारता है…
पता नहीं, ये मेरी मुहब्बत की हार है या तेरी बेरुख़ी की जीत|

मकसद पहचान लेते है

शहद जुबा के मकसद पहचान लेते है ,
गैरजरूरी तवज्जो की वजह जान लेते है ।
हमे मासूम , बेखबर , नादां समझते है वो ,
और हम रिश्तों को “बंदगी”