आईने के रूबरू क्या हुए वो चटक गया
काजल हम ने लगाया नजर आईने को लग गई|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
आईने के रूबरू क्या हुए वो चटक गया
काजल हम ने लगाया नजर आईने को लग गई|
इंसान हम पेचीदा ही सही,
शख्सियत हमारी संजीदा है।
जितना हूँ उससे ज़रा कम या ज्यादा न लगूँ
यानी मैं जैसा नहीं हूँ कभी वैसा न लगूँ|
मैं बदलते हुए हालात में ढल जाता हूँ
देखने वाले अदाकार समझते हैं मुझे|
लिखने को लिख रहे हैं हम ग़ज़ब की शायरीयाँ
पर लिखी न जा सकी कभी अपनी ही दास्ताँ………
शाख से फूल तोड़कर मैंने ,सीखा
अच्छा होना गुनाह है ,इस जहाँ में |
न जाने कैसी नज़र लगी है ज़माने की,
अब वजह नहीं मिलती मुस्कुराने की !
छोड़ दिया है हमने..तेरे ख्यालों में जीना,
.
अब हम लोगों से नहीं..लोग हमसे इश्क करते हैं |
सपने भी डरने लगे है तेरी बेवफाई से,
कहते है वो आते तो है मगर किसी और के साथ !!
ख़त जो लिखा मैनें इंसानियत के पते पर !
डाकिया ही चल बसा शहर ढूंढ़ते ढूंढ़ते !