इधर आओ जी भर के हुनर आज़माएँ,
तुम तीर आज़माओ, हम ज़िग़र आज़माएँ..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
इधर आओ जी भर के हुनर आज़माएँ,
तुम तीर आज़माओ, हम ज़िग़र आज़माएँ..
ज़िंदगी कम लगे ऐसी मोहब्बत चाहिए,
मुझे अपने वजूद की पूरी कीमत चाहिए…!
और भी शेर है लिखने को तिरंगा तो कम से कम साफ़ रहने दो भाई
ये बात मुझे आज तक समझ नहीं आई..
तुमहे मैं “सुकुन” बुलाऊ या “बेचैनी”..
कब आ रहे हो मुलाकात के लिये,
हमने चाँद रोका है, एक रात के लिये…!!
तुम तो फुहार सी थीं….
पर तुम्हारी यादें… मूसलाधार हैं…
कभी हूँ हर खुशी की राह में दीवार काँटों की,
कभी हर दर्द के मारे की आँखों की नमी हूँ मैं….
पत्तें से गिरती बून्द हो या गीले बालों से…
मौसम का असर तो दोनों पर ही जवां हैं..
दबे पाँव आती रही यादें सब तुम्हारी,
एक बार भी यादों के संग तुम नहीं आये…
ज़ख्म ख़ुद सारी कहानी कह रहे हैं ज़ुल्म की,
क्या करें फिर भी अदालत को गवाही चाहिए…