व्यापम

जननी माँ है, मौत है व्यापम
असमय मौत का स्रोत है व्यापम।

ग़म है व्यापम, तम है व्यापम,
शिवराज का परचम है व्यापम।

आगम सृष्टि तो निर्गम है व्यापम,
बड़ा ही कठोर व निर्मम है व्यापम।

असमय हर पल हर दम व्यापम,
भाजपा के वीरों का दमख़म व्यापम।

मोदी का हट दंभ और दम है व्यापम,
माँ बहनों की आँखो का नम है व्यापम।

रोज मौतों की दास्तान है व्यापम,
प्रदेश का नया क़ब्रिस्तान है व्यापम।

मौत है, कफन है, अर्थी है व्यापम,
जलियाँवाला के समानार्थी है व्यापम।

चार लाइन दोस्तों के नाम

चार लाइन दोस्तों के नाम

काश फिर मिलने की वजह मिल जाए
साथ जितना भी बिताया वो पल मिल जाए,
चलो अपनी अपनी आँखें बंद कर लें,
क्या पता ख़्वाबों में गुज़रा हुआ कल मिल जाए..
मौसम को जो महका दे उसे
‘इत्र’ कहते हैं
जीवन को जो महका दे उसे ही ‘मित्र’ कहते है l
क्यूँ मुश्किलों में साथ देते हैं दोस्त
क्यूँ गम को बाँट लेते हैं दोस्त
न रिश्ता खून का न रिवाज से बंधा है
फिर भी ज़िन्दगी भर साथ देते हैं दोस्त

ભુલાઇ ગયું

? ભુલાઇ ગયું ?

ઘરમાં ટી વી આવ્યું,
હું વાંચન ભુલ્યો.

બારણે ગાડી આવી,
હું ચાલવાનું ભુલ્યો.

હાથમાં મોબાઇલ આવ્યો,
હું પત્રલેખન ભુલ્યો.

કેલક્યુલેટર વપરાશથી,
ઘડીયા બોલવાનું ભુલ્યો.

એ સી ના સંગતથી,
ઝાડ નીચેની ઠંડી હવા ભુલ્યો.

શહેરમાં રહેવાથી,
માટીની વાસ ભુલ્યો.

બેંકના ખાતા સંભાળતા સંભાળતા,
પૈસાની કિંમત ભુલ્યો.
અભદ્ર ચિત્રો થકી,
સૌંદ્રય જોવાનું ભુલ્યો.

કૃત્રિમ સેંટના વાસ થકી,
ફુલોની સુગંધ ભુલ્યો.

ફાસ્ટ ફૂડના જમાનામાં,
સંતોષનો ઓડકાર ભુલ્યો.

સ્વાથીઁ સંબધો રાખવાથી,
સાચો પ્રેમ કરવાનું ભુલ્યો.

ક્ષણીક સુખના લોભમાં
સત્કમઁનો આનંદ ભુલ્યો.

સતત દોડતા રહેવાના જીવનમાં,
ક્ષણભરનો વિસામો ભુલ્યો.

ભુલાઇ ગયું ભુલાઇ ગયું …

क्या है

क्या है?

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है?
तुम ही कहो कि ये अंदाज़-ए-ग़ुफ़्तगू क्या है?

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है?

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन
हमारी जेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है?

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है?

रही ना ताक़त-ए-गुफ़्तार और हो भी
तो किस उम्मीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है?

टूट गया

टूट गया

समझौतों की भीड़-भाड़ में सबसे रिश्ता टूट गया
इतने घुटने टेके हमने, आख़िर घुटना टूट गया

देख शिकारी तेरे कारण एक परिन्दा टूट गया,
पत्थर का तो कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन शीशा टूट गया

घर का बोझ उठाने वाले बचपन की तक़दीर न पूछ
बच्चा घर से काम पे निकला और खिलौना टूट गया

किसको फ़ुर्सत इस दुनिया में ग़म की कहानी पढ़ने की
सूनी कलाई देखके लेकिन, चूड़ी वाला टूट गया

ये मंज़र भी देखे हमने इस दुनिया के मेले में
टूटा-फूटा नाच रहा है, अच्छा ख़ासा टूट गया

लेती नहीं दवाई माँ, जोड़े पाई-पाई माँ।

माँ

लेती नहीं दवाई माँ, जोड़े पाई-पाई माँ।

दुःख थे पर्वत, राई माँ हारी नहीं लड़ाई माँ।

इस दुनिया में सब मैले हैं, किस दुनिया से आई माँ।

दुनिया के सब रिश्ते ठंडे, गरमागर्म रजाई माँ।

जब भी कोई रिश्ता उधड़े, करती है तुरपाई माँ।

बाबू जी तनख़ा लाए बस, लेकिन बरक़त लाई माँ।

बाबूजी के पांव दबा कर, सब तीरथ हो आई माँ।

सभी साड़ियां छीज गई थीं , मगर नहीं कह पाई माँ।

माँ में से थोड़ी-थोड़ी, सबने रोज़ चुराई माँ।

घर में चूल्हे मत बांटो रे, देती रही दुहाई माँ।

बाबूजी बीमार पड़े जब, साथ-साथ मुरझाई माँ।

रोती है लेकिन छुप-छुप कर, बड़े सब्र की जाई माँ।

लड़ते-लड़ते, सहते-सहते, रह गई एक तिहाई माँ।

बेटी की ससुराल रहे खुश, सब ज़ेवर दे आई माँ।

माँ से घर, घर लगता है, घर में घुली, समाई माँ।

बेटे की कुर्सी है ऊंची, पर उसकी ऊंचाई माँ।

दर्द बड़ा हो या छोटा हो, याद हमेशा आई माँ।

घर के शगुन सभी माँ से, है घर की शहनाई माँ।

सभी पराये हो जाते हैं, होती नहीं पराई माँ।

सोनेरी संध्या…

सोनेरी संध्या..

उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो
खर्च करने से पहले कमाया करो

ज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे
बारिशों में पतंगें उड़ाया करो

दोस्तों से मुलाक़ात के नाम पर
नीम की पत्तियों को चबाया करो

शाम के बाद जब तुम सहर देख लो
कुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करो

अपने सीने में दो गज़ ज़मीं बाँधकर
आसमानों का ज़र्फ़ आज़माया करो

चाँद सूरज कहाँ, अपनी मंज़िल कहाँ
ऐसे वैसों को मुँह मत लगाया करो