क्यूँ बदलते हो अपनी फितरत को ए मौसम,
इन्सानों सी।
तुम तो रहते हो रब के पास
फिर कैसे हवा लगी जमाने की।।।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
क्यूँ बदलते हो अपनी फितरत को ए मौसम,
इन्सानों सी।
तुम तो रहते हो रब के पास
फिर कैसे हवा लगी जमाने की।।।