उफ्फ्फ तेरा ये बार बार रूठ जाना..
कसम से दिल न दिया होता , तो तेरी जान ले लेते..!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
उफ्फ्फ तेरा ये बार बार रूठ जाना..
कसम से दिल न दिया होता , तो तेरी जान ले लेते..!!
अकेला छोड़ने वालों को ये बताए कोई
कि हम तो राह को भी हम-सफ़र समझते हैं|
हमदर्द थे, हम-कदम थे, हमसफ़र थे, हमनशीं…..!
जो भी थे बस हम थे, वो तो कभी थे ही नहीं…..!!
इश्क़ बुझ चुका है,
क्यूंकि हम ज़ल चुके हैं|
यूँ ही वक्त को बदनाम न करिये.
क्योंकि वक्त, वक्त पर ही आता है.!
किसी हर्फ़ के पीछे, किसी लफ्ज़ के नीचे,
मुझे यकीं है, तू मिलेगी तो यहीं कहीं मुझे ।
हम भी माचिस की तीलियों से थे….
जो भी हुआ सिर्फ़ एक बार हुआ….
हवा बन कर बिखरने से;
उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है;
मेरे जीने या मरने से;
उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है;
उसे तो अपनी खुशियों से;
ज़रा भी फुर्सत नहीं मिलती;
मेरे ग़म के उभरने से;
उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है;
उस शख्स की यादों में;
मैं चाहे रोते रहूँ लेकिन;
मेरे ऐसा करने से;
उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है।
फ़क़ीर मिज़ाज़ हूँ मैं ,अपना अंदाज़ औरों से जुदा रखता हूँ…
लोग मंदिर मस्जिदों में जाते है , मैं अपने दिल में ख़ुदा रखता हूँ…
बडी ही शातिर दिमाग थी वो लडकी कसम से,.
जिसकी भी कसम खाई थी सब मरे हुऐ निकले!