परेशां है वो हमसे इश्क़ करके
वफादारी की नौबत आ गई है….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
परेशां है वो हमसे इश्क़ करके
वफादारी की नौबत आ गई है….
ए खुदा अगर तेरे पेन की श्याही खत्म है तो मेरा लहू लेले,
यू कहानिया अधूरी न लिखा कर
सब छोड़े जा रहे है आजकल हमें,,,,,
” ऐ जिन्दगी ” तुझे भी इजाजत है,,,,
जा ऐश कर…ll
कोई तो लिखता होगा इन कागजों और पत्थरों का भी नसीब ।
वरना मुमकिन नहीं की कोई पत्थर ठोकर खाये और कोई पत्थर भगवान बन जाए ।
और कोई कागज रद्दी और कोई कागज गीता और कुरान बन जाए ।।
कभी आग़ोश में यूँ लो की ये रूँह तेरी हो जाए।
बुलंदी देर तक किस शख्श के हिस्से में रहती है
बहुत ऊँची इमारत हर घडी खतरे में रहती है ।
इस छोटे से दिल में किस किस को
जगह दूँ ,
गम रहे, दम रहे, फ़रियाद रहे, या तेरी
याद रहे..
रात भर जलता रहा ये दिल उसकी याद में ,
समझ नही आता दर्द प्यार करने से होता है
या याद करने से …
“समझदार” एक मै हूँ
बाकि सब “नादान”..
बस इसी भ्रम मे घूम रहा
आज कल हर “इंसान”.!!
नसीहतें और दुआए बदलती नहीं है..
देने वाले लोग और तरीके बदल जाते है..