जरा देखो तो ये दरवाजे पर दस्तक किसने दी है, अगर ‘इश्क’ हो तो कहना, अब दिल यहाँ नही रहता..
Category: शायरी
सूरज रोज़ अब भी
सूरज रोज़ अब भी बेफ़िज़ूल ही निकलता है ।
तुम गये जब से उजाला नहीं हुआ….
मुझे लत है!!
मुझे लत है!!
मै खुद को खोद खोद कर..
खुद में पीड़ा खोजता हूँ!!
और फिर उस पीड़ा के नशे में..
मै खुद को दफन कर देता हूँ !!
लदी हुई है
लदी हुई है रेशमी चादरों से वो हरी मजार,
पर बाहर एक बूढ़ी अम्मा को ठंड से ठिठुरते देखा है।
बेजुबान पत्थर पे
बेजुबान पत्थर पे लदे है करोंडो के गहने मंदिरो में ।उसी दहलीज पर एक रूपये को तरसते नन्हें हाथों को देखा है।
खाली हाथ लेके
खाली हाथ लेके जब घर जाता हूँ मैं
मुस्कुरा देते हैं बच्चे और फिर से मर जाता हूँ मैं|
जीने का ज्यादा तजुर्बा
मुझे ज़िन्दगी जीने का ज्यादा तजुर्बा तो नहीं हैं
पर सुना है लोग सादगी से जीने नहीं देते|
किसी के नहीं होते
आसमां पे ठिकाने किसी के नहीं होते,
जो ज़मीं के नहीं होते, वो कहीं के नहीं होते..!!
ये बुलंदियाँ किस काम की दोस्तों…
की इंसान चढ़े और इंसानियत उतर जायें….
हारने के बाद
हारने के बाद इंसान नहीं टूटता…..
हारने के बाद लोगों का रवय्या उसे टूटने पर मज़बुर करता है…..
बहुत याद आते है
बहुत याद आते है
वो पल …….
जिसमे आप हमारे और हम तुम्हारे थे…